Saturday, October 23, 2010

"अक्स"

"'उन आँखों की झील सी गहराई में
ना जाने मेरा दिल कब खो गया
ना एहसास हुआ तनिक भी मुझको
बस एक लहर उठी ओर प्यार हो गया'

'जाने क्यूँ मैं बहता गया उनमे
हर किनारा मुझसे दूर हो गया
मैं घिरा रहा उसकी जुल्फों छाओँ में
जाने कब सवेरा जाने कब अंधेरा हो �"

"उसकी बातों के जादू से मैं बच ना पाया
बस उसकी ही ओर मैं खींचा चला आया
उस गुलाब से चेहरे का कोई जवाब नहीं
जिसकी खुशबू ने मेरा जीवन महकाया"

"मेरी ज़िंदगी का हर रुख़ ही मोड़ दिया उसने
जाने क्यूँ मैं भी बदले बिना रह ना पाया
उसी का ही एहसाह महका है मेरे जीवन में
उसने ही मेरे अरमानो को यूँ उड़ना सिखाया"

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