Saturday, May 2, 2015

जैसा बांटोगे, वैसा पाओगे

किसी गांव में एक किसान रहता था जो मक्का उगाता था. उसे हर साल सबसे अच्छे मक्का उगानेवाले किसान का पुरस्कार मिलता था.
एक अखबार का रिपोर्टर उसका इंटरव्यू लेने के लिए आया और उसने किसान से बेहतरीन मक्का उगाने का राज़ पूछा. कई बातों के साथ किसान ने उसे यह भी बताया कि जिन बीजों से वह उत्कृष्ट मक्का उगाता है उन्हें वह अपने आसपास के किसानों में भी बांटता है.
रिपोर्टर को यह बात बहुत अजीब लगी. उसने आश्चर्य से किसान से पूछा – “आपके सबसे अच्छे बीजों के कारण ही तो आपको हर साल सबसे अच्छे मक्का उगानेवाले किसान का पुरस्कार मिलता है, उन्ही बीजों को साथी किसानों में बांट देने में भला कैसी अक्लमंदी है!?”
“लगता है आपको खेती करने के सबसे व्यावहारिक नियम के बारे में जानकारी नहीं है” – किसान ने कहा – “हवा पके हुए मक्का के परागकणों को दूर-दूर के खेतों तक लेकर जाती है. यदि मेरे पड़ोसी किसान घटिया मक्का उगाएंगे तो सहपरागण के कारण मेरे मक्का की गुणवत्ता प्रभावित होगी. अच्छी फसल उगानेवाले किसान को हमेशा इसी तरह दूसरे किसानों की मदद करनी चाहिए”.
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इस किसान को पता है कि अगर उसके पड़ोसी किसान अच्छे बीज नहीं बोएंगे तो उसकी फसल भी उम्दा नहीं होगी.
ऐसा ही कुछ ज़िंदगी के साथ भी है. सदैव सुख और शांति से रहने की कामना करनेवाले व्यक्तियों को अपने पड़ोसियों की सुख-शांति की परवाह करनी चाहिए. किसी जीवन की कीमत इस बात से आंकी जाती है कि वह जीवन कितने लोगों के जीवन को छूता है. यदि आप खुश रहना चाहते हैं तो सब ओर खुशियां बिखेरें क्योंकि सबकी खुशियों पर ही आपकी खुशी निर्भर करती है.

दूसरों के दुःख

हिमालय के पर्वतों पर कहीं एक ज्ञानी महात्मा रहते थे. अनुयाइयों और श्रृद्धालुओं द्वारा बहुत तंग किये जाने के कारण उन्होंने पर्वतों पर ही एकाकी और सरल जीवन व्यतीत करना बेहतर समझा.
लेकिन उसकी प्रसिद्धि इतनी अधिक थी कि उनके दर्शनों के लिए लोग नदियाँ और घाटियाँ पार करके चले आते. लोग यह मानते थे कि महात्मा उन्हें दुखों और समस्याओं से छुटकारा दिला सकते हैं.
ऐसे ही कुछ श्रृद्धालुओं को महात्मा ने तीन दिनों तक खाली बैठाकर इंतज़ार कराया. इस बीच और भी लोग आ पहुंचे. जब वहां और लोगों के लिए जगह नहीं बची तो महात्मा ने सभी उपस्थितों से कहा – “आज मैं तुम सभी को दुखों और कष्टों से मुक्ति का उपाय बताऊँगा लेकिन तुम्हें यह वचन देना होगा कि तुम किसी को भी नहीं बताओगे कि मैं यहाँ रहता हूँ, और किसी और को यहाँ नहीं भेजोगे. अब मुझे एक-एक करके अपनी समस्याएँ बताओ”.
किसी ने बोलना शुरू किया, लेकिन उसे किसी और ने टोक दिया – सभी समझ गए थे कि महात्मा से संवाद का यह अंतिम अवसर था. जब वहां बहुत शोरगुल होने लगा तब महात्मा ने चिल्ला कर कहा – “शांत हो जाइए! आप सभी अपने-अपने कष्ट और तकलीफें एक पर्चे में लिखकर मेरे सामने रख दीजिये!”
जब सभी लोग लिख चुके तब महात्मा ने एक टोकरी में सारे पर्चों को गड्ड-मड्ड कर दिया और कहा – “ये टोकरी एक दूसरे को फिराते जाओ. हर व्यक्ति इसमें से एक परचा उठाये और पढ़े, फिर यह तय करे कि वह अपने दुःख ही अपने पास रखना चाहेगा या किसी और के दुःख लेना पसंद करेगा”.
सारे व्यक्तियों ने टोकरी से पर्चे उठाकर पढ़े और पढ़ते ही सभी बहुत चिंता में पड़ गए. वे इस नतीजे तक पहुंचे कि उनके दुःख और तकलीफें कितनी ही बड़ी क्यों न हों पर औरों के दुःख-दर्द के सामने वे कुछ भी नहीं थीं. दो घंटे के भीतर उनमें से हर किसी ने सारे पर्चे देख लिए और सभी को अपने ही पर्चे अपनी जेब के हवाले करने पड़े. दूसरों के दुखों की झलक पाकर उन्हें अपने दुःख हल्के लगने लगे थे.
जीवन का यह ज़रूरी सबक सीखकर वे सभी अपने-अपने घर को चले गए. उनके दुःख तो बरकरार थे पर उनका बोझ अब दिल और दिमाग पर उतना नहीं लग रहा था. फिर उनमें से किसी ने भी किसी और को महात्मा के आसरे का पता नहीं बताया.

Sunday, April 12, 2015

आज मैं जलाया जा रहा था

था मैं नींद में और मुझे इतना सजाया जा रहा था… 
बड़े प्यार से मुझे नहलाया जा रहा था…
ना जाने था वो कौन सा अजब खेल मेरे घर में… 
बच्चों की तरह मुझे कंधे पर उठाया जा रहा था…
था पास मेरा हर अपना उस वक़्त… 
फिर भी मैं हर किसी के मन से भुलाया जा रहा था…
जो कभी देखते भी न थे मोहब्बत की निगाहों से… 
उनके दिल से भी प्यार मुझ पर लुटाया जा रहा था…
मालूम नहीं क्यों हैरान था हर कोई मुझे सोते हुए देखकर… 
जोर-जोर से रोकर मुझे जगाया जा रहा था…
काँप उठी मेरी रूह वो मंज़र देखकर… 
जहाँ मुझे हमेशा के लिए सुलाया जा रहा था…
मोहब्बत की इंतहा थी जिन दिलों में मेरे लिए… 
उन्हीं दिलों के हाथों, आज मैं जलाया जा रहा था…
-मुनिश्री क्षमासागरजी

अगर पिता दुखी होगा और माँ रूठी होगी

वो पंगत में बैठ के निवालों का तोड़ना,
वो अपनों की संगत में रिश्तों का जोड़ना।

वो दादा की लाठी पकड़ गलियों में घूमना,
वो दादी का बलैया लेना और माथे को चूमना।

सोते वक्त दादी पुराने किस्से-कहानी कहती थीं,
आंख खुलते ही माँ की आरती सुनाई देती थी।

इंसान खुद से दूर अब होता जा रहा है,
वो संयुक्त परिवार का दौर अब खोता जा रहा है।

माली अपने हाथ से हर बीज बोता था,
घर ही अपने आप में पाठशाला होता था।

संस्कार और संस्कृति रग-रग में बसते थे,
उस दौर में हम मुस्कुराते नहीं खुलकर हंसते थे।

मनोरंजन के कई साधन आज हमारे पास हैं,
पर ये निर्जीव है, इनमें नहीं साँस है।

आज गरमी में एसी और जाड़े में हीटर हैं,
और रिश्तों को मापने के लिए स्वार्थ का मीटर है।

वो समृद्ध नहीं थे फिर भी दस-दस को पालते थे,
खुद ठिठुरते रहते और कम्बल बच्चों पर डालते थे।

मंदिर में हाथ जोड़ तो रोज सर झुकाते हैं,
पर माता-पिता के धोक खाने होली-दिवाली जाते हैं।

मैं आज की युवा पीढ़ी को इक बात बताना चाहूँगा,
उनके अंत:मन में एक दीप जलाना चाहूँगा।

ईश्वर ने जिसे जोड़ा है उसे तोड़ना ठीक नहीं,
ये रिश्ते हमारी जागीर हैं, ये कोई भीख नहीं।

अपनों के बीच की दूरी अब सारी मिटा लो,
रिश्तों की दरार अब भर लो, उन्हें फिर से गले लगा लो।

अपने आप से सारी उम्र नज़रें चुराओगे,
अपनों के ना हुए तो किसी के ना हो पाओगे।

सब कुछ भले ही मिल जाए पर अपना अस्तित्व गँवाओगे,
बुजुर्गों की छत्रछाया में ही महफूज रह पाओगे।

होली बेमानी होगी दीपावली झूठी होगी,
अगर पिता दुखी होगा और माँ रूठी होगी।


-मुनिश्री क्षमासागरजी

Monday, February 2, 2015

Tough Time

Tough Time Doesn't Last Long For Great People A ball, though forced to fall on ground with a blow from hand, rebounds upwards. Generally, the misfortunes of the virtuous are momentary. 

प्रयत्न

प्रयत्न करने से ही कार्य पूर्ण होते हैं, केवल इच्छा करने से नहीं, सोते हुए शेर के मुख में मृग स्वयं प्रवेश नहीं करते 

Love

Between what is said and not meant,
and what is meant but not said;
most of the Love is lost.
Khalil Gibram

जीत

जीत हासिल करनी हो तो काबिलियत बढाओ,
किस्मत की रोटी तो कुत्तों को भी नसीब होती है!

सारे जहाँ से अच्छा

सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा
हम बुलबुले हैं इसकी, वो गुलसितां हमारा

पर्वत वो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमाँ का
वो संतरी हमारा, वो पासवां हमारा, सारे...

गोदी में खेलती हैं, जिसकी हज़ारों नदियां
गुलशन है जिसके दम से, रश्क-ए-जिनां हमारा
सारे....

मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन हैं, हिन्दोस्तां हमारा, सारे...

मज़बूरी

हर इन्सान यहा बिकता है
कितना सस्ता या कितना महंगा
ये उसकी मज़बूरी तय करती है!!

बेहतर जीवन

काबू में रखें – प्रार्थना के वक़्त अपने दिल को,
काबू में रखें – खाना खाते समय पेट को,
काबू में रखें – किसी के घर जाएं तो आँखों को,
काबू में रखें – महफ़िल मे जाएं तो ज़बान को,
काबू में रखें – पराया धन देखें तो लालच को,
भूल जाएं – अपनी नेकियों को,
भूल जाएं – दूसरों की गलतियों को,
भूल जाएं – अतीत के कड़वे संस्मरणों को,
छोड दें – दूसरों को नीचा दिखाना,
छोड दें – दूसरों की सफलता से जलना,
छोड दें – दूसरों के धन की चाह रखना,
छोड दें – दूसरों की चुगली करना,
छोड दें – दूसरों की सफलता पर दुखी होना,

Self Appraisal

एक छोटा बच्चा एक बड़ी दुकान पर लगे टेलीफोन बूथ पर जाता हैं
और मालिक से छुट्टे पैसे लेकर एक नंबर डायल करता हैं।
दुकान का मालिक उस लड़के को ध्यान से देखते हुए उसकी बातचीत पर ध्यान देता हैं-
लड़का – मैडम क्या आप मुझे अपने बगीचे की साफ़ सफाई का काम देंगी?
औरत – (दूसरी तरफ से) नहीं,
मैंने एक दुसरे लड़के को अपने बगीचे का काम देखने के लिए रख लिया हैं।
लड़का – मैडम मैं आपके बगीचे का काम उस लड़के से आधे वेतन में करने को तैयार हूँ!
औरत – मगर जो लड़का मेरे बगीचे का काम कर रहा हैं उससे मैं पूरी तरह संतुष्ट हूँ।
लड़का – ( और ज्यादा विनती करते हुए)
मैडम मैं आपके घर की सफाई भी फ्री में कर दिया करूँगा!!
औरत – माफ़ करना मुझे फिर भी जरुरत नहीं हैं। धन्यवाद।
लड़के के चेहरे पर एक मुस्कान उभरी और उसने फोन का रिसीवर रख दिया।
दुकान का मालिक जो छोटे लड़के की बात बहुत ध्यान से सुन रहा था
वह लड़के के पास आया और बोला-
“बेटा मैं तुम्हारी लगन और व्यवहार से बहुत खुश हूँ, मैं तुम्हे अपने स्टोर में नौकरी दे सकता हूँ”
लड़का – नहीं सर मुझे नौकरी की जरुरत नहीं हैं आपका धन्यवाद!
दुकानमालिक- (आश्चर्य से) अरे अभी तो तुम उस औरत से नौकरी के लिए इतनी विनती कर रहे थे!!
लड़का – नहीं सर, मैं अपना काम ठीक से कर रहा हूँ की नहीं बस मैं ये चेक कर रहा था, मैं जिससे बात कर रहा था, उन्ही के यहाँ पर जॉब
करता हूँ।