Monday, December 22, 2008

दोस्त

बचपन के दिन और दोस्त का साथ
बारिश के मौसममें एक छाते में साथ
दो पहियों पे ले अपनी मस्ती हज़ार
चल पड़ते थे सोचते थे जहां पे है हमारा राज

सुबह सूरज की किरणों से चढ़ती थी मस्ती
पेडो पे चढ़ के तोड़ते थे आम
खेल कूद में ना जाने कब हो जाती थी शाम
थके हारे फिर से करते थे कल का इंतज़ार

सोचा था जिन्दगी भर युही होगा हमारा साथ
हर दिन बीतेंगे मस्ती में साथ
बैठकर साएकल के पेयों पे
अनजान थे समय के चक्र के फेरो से

ना जाने किस मोड़ पर आकर छुट गया साथ
जिन्दगी के पीछे दौड़ते बिचड गए है आज
ना जाने दुनियाके कौनसे कोने में है उसका वास
दूर रहकर भी रहा हैं वोह हमेशा मेरे दिल के पास

कितने अरसो बीत गए हैं आज
सावन हमेशा दिलाता है उसकी याद
वोह निस्वार्थ प्रेम और मासूमियत का साथ
ना ले पाया है कोइ आज भी वोह स्थान

हम अपनी दुआ में असर ढूँढ़ते हैं

हर गली हर कूचा दर-ब-दर ढूँढ़ते हैं
हम अपनी दुआ में असर ढूँढ़ते हैं

तुम देखकर हँसते हो मुझे और हम
तेरे चेहरे पर अपनी नज़र ढूँढ़ते हैं

कौन दूसरा होगा हम-सा सितम-परस्त
हम अपना-सा कोई जिगर ढूँढ़ते हैं

जो राह मंज़िल तक पँहुचती होगी
तेरी चाहत में ऐसी रहगुज़र ढूँढ़ते हैं

धूप छुप गयी है कोहरे से भरी वादियों में
और हम हैं कि तेरा नगर ढूँढ़ते हैं

तुमने कहा नहीं कि कब आओगे तुम
हम तुझे अपनी राह में मगर ढूँढ़ते हैं

- विनय प्रजापति

Monday, December 15, 2008

Jeene Ke Liye Bhi Waqt Nahi…….

Har khushi Hai Logon Ke Daman Mein,

Par Ek Hansi Ke Liye Waqt Nahi.

Din Raat Daudti Duniya Mein,

Zindagi Ke Liye Hi Waqt Nahi.


Maa Ki Loree Ka Ehsaas To Hai,

Par Maa Ko Maa Kehne Ka Waqt Nahi.

Saare Rishton Ko To Hum Maar Chuke,

Ab Unhe Dafnane Ka Bhi Waqt Nahi.


Saare Naam Mobile Mein Hain,

Par Dosti Ke Lye Waqt Nahi.

Gairon Ki Kya Baat Karen,

Jab Apno Ke Liye Hi Waqt Nahi.


Aankhon Me Hai Neend Badee,

Par Sone Ka Waqt Nahi.

Dil Hai Ghamon Se Bhara Hua,

Par Rone Ka Bhi Waqt Nahi.


Paison ki Daud Me Aise Daude,

Ki Thakne ka Bhi Waqt Nahi.

Paraye Ehsason Ki Kya Kadr Karein,

Jab Apane Sapno Ke Liye Hi Waqt Nahi.


Tu Hi Bata E Zindagi,

Iss Zindagi Ka Kya Hoga,

Ki Har Pal Marne Walon Ko,

Jeene Ke Liye Bhi Waqt Nahi…….

Sunday, December 14, 2008

साहिल को अपनाना हो तो

साहिल को अपनाना हो तो तूफ़ानों से हाथ मिलाना।
जिनसे तेरा दामन उलझे
उन काँटों में फूल खिलाना।

किसे पता सुनसान सफर में कितने रेगिस्तान मिलेंगे।
कौन बताए किस पत्थर के सीने से झरने निकलेंगे।
प्यास अगर हद से बढ़ जाए आँसू पीकर काम चलाना।
जिनसे तेरा दामन उलझे
उन काँटों में फूल खिलाना।

मंज़िल तक तो साथ न देंगे आते जाते साँझ सवेरे।
अपनी-अपनी चाल चलेंगे कभी उजाले कभी अँधेरे।
रातें राह दिखाएँगी तू बस छोटा-सा दीप जलाना।
जिनसे तेरा दामन उलझे
उन काँटों में फूल खिलाना।

ज़ोर-शोर से उमड़-घुमड़ कर मौसम की बारात उठेगी।
धीरे-धीरे रिमझिम होगी लेकिन पहले उमस बढ़ेगी।
सावन जम कर बरसेगा दो पल झूलों की बात चलाना।
जिनसे तेरा दामन उलझे
उन काँटों में फूल खिलाना।

घड़ी बहारों की आने दे भर लेना चाहत की झोली।
आवारा पागल भँवरे से मस्त पवन इठलाकर बोली।
कलियों का मन डोल उठेगा ज़रा सँभल कर डाल हिलाना।
जिनसे तेरा दामन उलझे
उन काँटों में फूल खिलाना।

- मदन मोहन अरविन्द

Tuesday, November 25, 2008

काँच की बरनी और दो कप चाय - एक बोध कथा

जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी-जल्दी करने की इच्छा होती है, सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है, और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं, उस समय ये बोध कथा, "काँच की बरनी और दो कप चाय" हमें याद आती है


दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं...उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी (जार) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ... आवाज आई...फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे-छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये, धीरे-धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी, समा गये, फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, क्या अब बरनी भर गई है, छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ.. कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले-हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया, वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई, अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ.. अब तो पूरी भर गई है.. सभी ने एक स्वर में कहा..सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली, चाय भी रेत के बीच में स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई...


प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया - इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो... टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान, परिवार, बच्चे, मित्र, स्वास्थ्य और शौक हैं, छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी, कार, बडा़ मकान आदि हैं, और रेत का मतलब और भी छोटी-छोटी बेकार सी बातें, मनमुटाव, झगडे़ है..अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती, या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते, रेत जरूर सकती थी...ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है...यदि तुम छोटी-छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा... मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है अपने बच्चों के साथ खेलो, बगीचे में पानी डालो, सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ, घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको, मेडिकल चेक-अप करवाओ..टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो, वही महत्वपूर्ण है... पहले तय करो कि क्या जरूरी है... बाकी सब तो रेत है..छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे..


अचानक एक ने पूछा, सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि "चाय के दो कप" क्या हैं ?प्रोफ़ेसर मुस्कुराये, बोले.. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया... इसका उत्तर यह है कि, जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे, लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये

Monday, October 27, 2008

tumko humsafar banana hain

kuch ankahey sawal hain is dil mein

kuch adhoori si kashish hain mujh mein

kaisey kahoon tumsey

tumko chahney ki saza hain kismat mein........





kuch paana kuch khona hain zindagi mein

kuch ehsaas ji sey churana hain mohabbat mein

kaisey kahoon tumsey

tumko dekhna aarzoo hain meri har pal mein........




kuch toh the pal tumko hasaney mein

kuch toh the lafz tumko paas bulaaney mein

kaisey kahoon tumsey

tumko humsafar banana hain khwaish meri har saans mein........



kuch ankahey sawal hain is dil mein
kuch adhoori si kashish hain mujh mein
kaisey kahoon tumsey
tumko chahney ki saza hain kismat mein........




kuch paana kuch khona hain zindagi mein
kuch ehsaas ji sey churana hain mohabbat mein
kaisey kahoon tumsey
tumko dekhna aarzoo hain meri har pal mein........



kuch toh the pal tumko hasaney mein
kuch toh the lafz tumko paas bulaaney mein
kaisey kahoon tumsey
tumko humsafar banana hain khwaish meri har saans mein........