Tuesday, August 24, 2010

Saare Jahan Se Accha


सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा ।
हम बुलबुले है इसकी ये गुलसिता हमारा ॥धृ॥
घुर्बत मे हो अगर हम रहता है दिल वतन मे ।
समझो वही हमे भी दिल है जहाँ हमारा ॥१॥
परबत वो सब से ऊंचा हमसाय आसमाँ का ।
वो संतरी हमारा वो पासबा हमारा ॥२॥
गोदी मे खेलती है इसकी हजारो नदिया ।
गुलशन है जिनके दम से रश्क-ए-जना हमारा ॥३॥
ए अब रौद गंगा वो दिन है याद तुझको ।
उतर तेरे किनारे जब कारवाँ हमारा ॥४॥
मझहब नही सिखाता आपस मे बैर रखना ।
हिन्दवी है हम वतन है हिन्दोस्तान हमारा ॥५॥
युनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गए जहाँ से ।
अब तक मगर है बांकी नामो-निशान हमारा ॥६॥
कुछ बात है की हस्ती मिटती नही हमारी ।
सदियो रहा है दुश्मन दौर-ए-जमान हमारा ॥७॥
इक़्बाल कोइ मेहरम अपना नही जहाँ मे ।
मालूम क्या किसी को दर्द-ए-निहा हमारा ॥८॥
Better than the entire world, is our Hindustan,
We are its nightingales, and it (is) our garden abode
If we are in an alien place, the heart remains in the homeland,
Know us to be only there where our heart is.
That tallest mountain, that shade-sharer of the sky,
It (is) our sentry, it (is) our watchman
In its lap frolic those thousands of rivers,
Whose vitality makes our garden the envy of Paradise.
O the flowing waters of the Ganges, do you remember that day
When our caravan first disembarked on your waterfront?
Religion does not teach us to bear ill-will among ourselves
We are of Hind, our homeland is Hindustan.
In a world in which ancient GreeceEgypt, and Rome have all vanished without trace
Our own attributes (name and sign) live on today.
Such is our existence that it cannot be erased
Even though, for centuries, the cycle of time has been our enemy.
Iqbal! We have no confidant in this world
What does any one know of our hidden pain?

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