Monday, December 22, 2008

दोस्त

बचपन के दिन और दोस्त का साथ
बारिश के मौसममें एक छाते में साथ
दो पहियों पे ले अपनी मस्ती हज़ार
चल पड़ते थे सोचते थे जहां पे है हमारा राज

सुबह सूरज की किरणों से चढ़ती थी मस्ती
पेडो पे चढ़ के तोड़ते थे आम
खेल कूद में ना जाने कब हो जाती थी शाम
थके हारे फिर से करते थे कल का इंतज़ार

सोचा था जिन्दगी भर युही होगा हमारा साथ
हर दिन बीतेंगे मस्ती में साथ
बैठकर साएकल के पेयों पे
अनजान थे समय के चक्र के फेरो से

ना जाने किस मोड़ पर आकर छुट गया साथ
जिन्दगी के पीछे दौड़ते बिचड गए है आज
ना जाने दुनियाके कौनसे कोने में है उसका वास
दूर रहकर भी रहा हैं वोह हमेशा मेरे दिल के पास

कितने अरसो बीत गए हैं आज
सावन हमेशा दिलाता है उसकी याद
वोह निस्वार्थ प्रेम और मासूमियत का साथ
ना ले पाया है कोइ आज भी वोह स्थान

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