हर गली हर कूचा दर-ब-दर ढूँढ़ते हैं
हम अपनी दुआ में असर ढूँढ़ते हैं
तुम देखकर हँसते हो मुझे और हम
तेरे चेहरे पर अपनी नज़र ढूँढ़ते हैं
कौन दूसरा होगा हम-सा सितम-परस्त
हम अपना-सा कोई जिगर ढूँढ़ते हैं
जो राह मंज़िल तक पँहुचती होगी
तेरी चाहत में ऐसी रहगुज़र ढूँढ़ते हैं
धूप छुप गयी है कोहरे से भरी वादियों में
और हम हैं कि तेरा नगर ढूँढ़ते हैं
तुमने कहा नहीं कि कब आओगे तुम
हम तुझे अपनी राह में मगर ढूँढ़ते हैं
- विनय प्रजापति
1 comment:
Bhaut aachi Shayri hai!
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